रविवार, 15 जनवरी 2012

piya tora kaisa abhiman

These are the lines that are read in a song from the movie raincoat. I just love them and couldn't find them on google. So, here they are-


किसी मौसम का झोंका था,
जो इस दीवार पे लटकी हुई तस्वीर तिरछी कर गया है.


गए मौसम में यह दीवारें यूँ सीली नहीं थीं,
न जाने इस दफा क्यूँ इनमें सीलन आ गई है, दरारें पड़ गई हैं .
और सीलन इस तरह बहती है जैसे,
खुश्क रुखसारों पे गीले आँसूं चलते हैं.


ये बारिश गुनगुनाती थी, इसी छत की मुंडेरों पर,
ये घर की खिडकियों के कांच पर ऊँगली से लिख जाती थी संदेशे.
सिसकती रहती है बैठी हुई अब बंद रोशनदानों के पीछे.


दोपहरें ऐसी लगती हैं,
बिना मोहरों के खली खाने रखे हैं.
न कोई खेलना वाला है बाज़ी,
न कोई चालें चलता है.


न दिन होता है अब, न रात होती है.
सभी कुछ रुक गया है.
वो क्या मौसम का झोंका था,
जो इस दीवार पर लटकी हुई तस्वीर तिरछी कर गया है ?



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